NEWS : श्रवण मास की नवमी, और ग्राम बमोरा में ब्रह्मभोज संपन्न, सेकड़ो लोग हुए शामिल, वर्षों से चली आ रही ये परंपरा, ग्रामीणों का अहम योगदान, पढ़े खबर

श्रवण मास की नवमी

NEWS : श्रवण मास की नवमी, और ग्राम बमोरा में ब्रह्मभोज संपन्न, सेकड़ो लोग हुए शामिल, वर्षों से चली आ रही ये परंपरा, ग्रामीणों का अहम योगदान, पढ़े खबर

रिपोर्ट- राजेश प्रपन्न 

जीरन। तहसील मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर अपनी धार्मिक पृष्टभूमि पर कायम ग्राम बमोरा में प्रतिवर्ष ग्रामीणों द्वारा ब्रह्ममभोज का आयोजन किया जाता है। अपने पूर्वजों द्वारा निर्धारित की गई परम्परा का ग्रामीणों द्वारा प्रतिवर्ष निर्वाह किया जाता है। ग्रामीणों द्वारा इसवर्ष भी श्रवण मास के नवमी को 3 अगस्त 2025 रविवार को गाँव बमोरा में ब्रह्ममभोज का आयोजन किया गया। जिसमें हजारों की संख्या में ब्राह्मणों को सहपरिवार भोजन करवाया गया और गांव की खुशहाली और सम्रद्धि का आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रतिवर्ष ब्रह्ममभोज का आयोजन श्रवण मास की नवमी को ही किया जाता है। 

मान्यता है कि, गांव के बसने के समय गाँव की कुशलता और सम्रद्धि के लिए पूर्वजो ने सेकड़ो साल पहले श्रवण मास नवमी को शुरू किया था ब्रह्ममभोज का आयोजन। गाँव के बसने के साथ ही सेकड़ो वर्षों से चली आ रही है एक ऐसी ऐतिहासिक परंम्परा जिसका निर्वाह ग्रामीणों द्वारा आज तक बिना किसी विघ्न के प्रतिवर्ष आयोजन किया जा रहा है। गाँव के बुजुर्ग कवर लाल पाटीदार उम्र 85 वर्ष शंकर लाल पाटीदार उम्र 82 वर्ष से जब बात कर पाता किया तो बताया कि किसी को पता नहीं है कब से चल रही है ब्रह्ममभोज कि परंपरा। 

अपने बुजुर्गों से किस्सो में सुना था कि हमारे पूर्वजों गुजरात से सेकड़ो सालों पहले आये थे जो पास ही के गांव लखमी में रहते थे जो खेती और गाय पालने मजदूरी जैसे व्यवसाय से जुड़े थे जो अक्सर वर्तमान में गाँव बमोरा जहाँ सिर्फ जंगल था गाये चराने के लिए आते थे और यही पानी के नाले के पास है गाय चराते थे बताते हैं कि गाय चराते समय गाय पर शेर ने हमला कर दिया था गाय को बचाने के लिए गायो के झुंड में से सांड ने शेर से लड़ाई कर शेर के अपने सिंगो से मार दिया था उस सांड का नाम भोला था और पानी के नाले के पास ही शिव मंदिर होने के कारण पूर्वजो ने यही पर बसने का विचार कर गाँव का नाम भी इसी घटना से जोड़ा गया था। 

सांड एक गो वंश होने के साथ ही उसको शिव का वाहन नंदी से जोड़ कर उसके नाम से ही गांव का नाम रखा गया जो भमभोला रखा गया था जो आज बमोरा के नाम से जाना जाता है। गांव की खुशहाली और सम्रद्धि के लिए पूर्वजो ने करीब 150 साल से भी पहले ब्रह्ममभोज की शुरुआत की थी जिसको ग्रामीण आज भी निभा रहे हैं।ब्रह्ममभोज में पधारे शिवबैरागी से चर्चा की तो बताया कि में भी बचपन से ही गाँव मे ब्रह्ममभोज के कार्यक्रम को होते हुए देख रहा हूँ गाँव में यह प्रथा कब से चल रही है कोई नही जानता हा यह सभी कहते हैं कि करीब 150 साल से भी ज्यादा समय से चली आ रही है यह परंपरा यहाँ पर सभी साधु संतों ब्राह्मण जनों को बड़े ही आदरसत्कार के साथ भोजन करवाया जाता है।