BIG NEWS : मल्हारगढ़ तहसील के किसानों ने बजाया किसान आंदोलन का बिगुल, आहट तेज, 2017 में भी इसी जगह से हुई थी बड़ी शुरुआत, पढ़े खबर

मल्हारगढ़ तहसील के किसानों ने बजाया किसान आंदोलन का बिगुल

BIG NEWS : मल्हारगढ़ तहसील के किसानों ने बजाया किसान आंदोलन का बिगुल, आहट तेज, 2017 में भी इसी जगह से हुई थी बड़ी शुरुआत, पढ़े खबर

रिपोर्ट- नरेंद्र राठौर 

पिपलियामंडी। समस्याओं का निराकरण नही होने पर किसानों का गुस्सा एक बार फिर उबाल पर है। खेत-खलिहानों में खड़ी सोयाबीन की फसल पीला मोज़ेक रोग से बर्बाद हो चुकी है, लेकिन शासन के निर्देशों के बावजूद अब तक किसी अधिकारी ने नुकसान का सर्वे करने की जहमत तक नहीं उठाई। किसानों का कहना है कि पटवारी और तहसीलदार गांवों में आकर हालात देखने की बजाय कुर्सियों से ही कागज़ी खानापूर्ति कर रहे हैं। इसी उपेक्षा से आक्रोशित होकर किसानों ने रविवार को गांव रिंछा के बालाजी मंदिर से आंदोलन का बिगुल फूंक दिया।

2017 में इसी मंदिर पर लगी थी चौपाल-

रिंछा के बालाजी मंदिर पर रविवार को बड़ी संख्या में किसान जुटे, आपको बता दें कि यह मंदिर वही है, जिससे 2017 में किसानों की चौपाल के बाद किसान आन्दोलन की शुरुआत हुई थी। यहां 12 गांवों के किसान नेताओं और किसानों ने एकजुट होकर शासन-प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि तत्काल सर्वे कर मुआवजा नहीं दिया गया तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा। मंदिर के लाउडस्पीकर से आंदोलन का एलान कर किसानों ने स्पष्ट कहा कि अब वे चुप नहीं बैठेंगे। किसानों की यह नाराजगी प्रशासन के लिए हल्के में लेने वाली नहीं है। 

याद दिला दें कि 6 जून 2017 को मंदसौर में हुए किसान आंदोलन में पुलिस फायरिंग से 5 किसानों की मौत हो गई थी, जबकि एक किसान की पीटकर हत्या कर दी गई थी। जबकि कई किसान गोली लगने से घायल हुए थे। इस आन्दोलन करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ था। इस घटना ने पूरे प्रदेश ही नहीं, देशभर में हड़कंप मचा दिया था। इसी आंदोलन में गोली लगकर घायल हुए किसान सुरेंद्रसिंह भी रविवार की बैठक में मौजूद रहे। उन्होंने किसानों को अपने शरीर पर लगे गोली के जख्म दिखाते हुए अपील की कि आंदोलन शांतिपूर्ण रहे और 2017 जैसी स्थिति न बने।

गली-गली शराब बिक सकती है तो किसानों को क्यों नही मिल सकता उपज का दाम-

क्षेत्रीय किसान नेता व रीछा के पूर्व सरपंच प्रतिनिधि धर्मेंद्र धनगर ने मंच से ऐलान करते हुए कहा कि यदि प्रशासन बहरा बना रहा तो आंदोलन उग्र रूप लेगा। हाईवे जाम कर किसानों की समस्या का निराकरण कराया जाएगा। धनगर ने कहा कि जहां एक ओर गांव-गांव, गली-गली डायरी सिस्टम से मनमाने दामों पर अवैध तरीके से शराब बिक सकती है तो किसानों की फसल का उचित दाम व मुआवजा क्यों नही मिल सकता ? किसानों का कहना था कि इस बार किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या है सोयाबीन की फसल का नुकसान। खेतों में खड़ी फसल पीली पड़ चुकी है और अफलन के कारण पूरी तरह नष्ट हो रही है। 

किसानों का कहना है कि मेहनत, लागत और सपनों से बोई गई फसल अब केवल खेतों में सूखी डंडियों के रूप में खड़ी है। शासन ने अधिकारियों को सर्वे करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन अब तक न पटवारी पहुंचे, न तहसीलदार। किसानों का कहना है कि हालात देखे बिना मुआवजा देना असंभव है, लेकिन प्रशासन आंखें मूंदकर बैठा है। उल्लेखनीय है कि किसानों के इस बिगुल से प्रशासन की टेंशन बढ़ना तय है। यदि समय रहते किसानों की मांगों पर कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाले दिनों में मंदसौर फिर आंदोलन की आग में झुलस सकता है। किसान नेताओं ने साफ कहा है कि आंदोलन की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी। फिलहाल सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि प्रशासन किस तरह किसानों की नाराजगी को शांत करता है।

बैठक में मौजूद रहे 12 गांव के किसान-

बैठक में 12 गांव के किसान बड़ी संख्या में पहुंचे। इनमें पूर्व सरपंच प्रतिनिधि धर्मेंद्र धनगर, रामसिंह सोनगरा, रामप्रसाद धनगर, गोपाल धनगर, बापूसिंह सोनगरा, सुरेंद्रसिंह, रणजीतसिंह, विनोद पोरवाल, महेश पोरवाल, नागूसिंह, कृपालसिंह, सोहनलाल मेघवाल, रमेश मालवीय, बहादूरसिंह, मिट्ठुसिंह सोनगरा, अर्जुनदास बैरागी, जलोदिया के रामनिवास कारपेंटर, जगदीश धनगर, बरुजना के सुरेश पाटीदार सहित बडी संख्या किसान शामिल हुए। नेताओं ने मंच से सरकार और प्रशासन को चेतावनी दी कि किसान अब और इंतजार नहीं करेंगे।