BIG NEWS : भारतीय ज्ञान परंपरा-विविध सन्दर्भ पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन, प्रो. डीपी मिश्रा बोले- भारतीय ज्ञान परंपरा खंडित होने के कारण हम पराधीन हुए, पढ़े खबर

भारतीय ज्ञान परंपरा-विविध सन्दर्भ पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन

BIG NEWS : भारतीय ज्ञान परंपरा-विविध सन्दर्भ पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन, प्रो. डीपी मिश्रा बोले- भारतीय ज्ञान परंपरा खंडित होने के कारण हम पराधीन हुए, पढ़े खबर

नीमच। उच्च शिक्षा विभाग, मध्य प्रदेश शासन, भोपाल के निर्देशानुसार एवं प्राचार्य डॉ. के.एल. जाट के निर्देशन में स्वामी विवेकानंद शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा-विविध सन्दर्भ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन सोमवार को किया गया। वेबिनार में प्रतिभागियों का स्वागत भूनेश अम्बवानी (सहायक प्राध्यापक गणित) और प्रो. प्रशांत मिश्रा के द्वारा किया। उदघाटन सत्र में वेबिनार के उद्देश्यो पर प्रकाश डालते हुए वक्ताओं का परिचय कार्यक्रम के संयोजक डॉ. महेंद्र कुमार शर्मा द्वारा दिया। 

इस वेबिनार में प्रथम वक्ता प्रो. शीला राय, निदेशक इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन दिल्ली ने अपने उद्बोधन के माध्यम से बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा प्राचीन समय से ही बहुत समृद्ध और उन्नत थी। भारतीय ज्ञान परंपरा को जहां मुगल शासकों ने तहस नहस किया। वहीं ब्रिटिश राज में अंग्रेजों ने आपसी संबंधों को तोड़ने का कार्य किया। प्रो. रॉय ने बताया कि, लगभग 20 वर्ष पहले भारत में केवल पाश्चात्य राजनीतिक विचारकों को ही पढ़ाया जाता था। इस दिशा में राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में पहली बार महाविद्यालय स्तर पर प्रथम वर्ष में मनु, कौटिल्य और शुक्र जैसे भारतीय राजनीतिक विचारकों का अध्ययन अध्यापन प्रारंभ किया। जिससे वसुधैव कुटुम्बकुम वाली, प्राणी मात्र के प्रति कल्याण की भावना रखने वाली प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के अध्ययन का सिलसिला महाविद्यालय स्तर प्रारंभ हुआ। 

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एनआइटीटीटीआर (NITTTR) कोलकाता के निदेशक प्रो.डी.पी. मिश्रा ने अपने उद्बोधन हम भौतिक सुख सुविधा वाली पाश्चात्य ज्ञान परंपरा को निर्वहन कर रहे है जो हमे आसुरी ज्ञान प्रवृति में रत रखता है। 75 वर्षों की स्वाधीनता के बाद भी मैकॉले की शिक्षा पद्धति क्यों लागू रही यह प्रश्न हम कभी नहीं उठाते एक सुखद विषय यह है कि नयी शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परम्परा का संवर्द्धन करने के लिए प्रावधान किया गया। भारतीय ज्ञान परम्परा बहुत ही बेमिसाल थी लेकिन अब परंपरा के नाम पर  व्यापारीकरण -बाज़ारीकरण चल रहा है प्रो.मिश्रा ने भारत और ज्ञान का अर्थ बताते हुए हुए कहा को जो “भा” में रत है यानि ज्ञान में रत है वो भारत है ज्ञान वो है जो लोकहित करता है लोकोहितार्थम्  ज्ञानार्जनम् तैत्तरीय उपनिषद में भी कहा गया है कि सत्यम ज्ञानम् अनंतम ब्रह्म अर्थात्  जो ज्ञान है वही ब्रह्म है।

शिक्षक या कोई भी व्यक्ति किसी को नहीं दे सकता वो सिर्फ़  सूचना दे सकता है ज्ञान को केवल आहरण किया जा सकता है और ज्ञान का आहरण क्यों किया जाये लोक हित के लिए किया जाये “लोकहितार्थम ज्ञानार्जनम “ ज्ञान दो प्रकार का होता है परा ज्ञान अपरा ज्ञान यानी भौतिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान, कृष्ण ने गीता में कहा है की अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः स:च प्रवदा अहम् आध्यात्म की बिना ज्ञान/ विधा विध्वंस्कारी होता है इन दोनों ज्ञानों में समन्वय से ही जीवन चल सकता है ये जीवन के दो पहिये है पाश्चात्य देशों  ने इन  दोनों ज्ञान परंपरा को माना नहीं इसलिए वहाँ अब धरती नष्ट होने की कगार पर है 

हमारी शिक्षा व्यवस्था देव भूमि भारत को असुर भूमि बना रही है ,ज्ञान ही हमारे अंदर प्रकाश दे सकता है अंधकार को निष्कासित कर सकता है। इसलिए वर्तमान समय में भारतीय ज्ञान परंपरा को नवीन शिक्षा पद्धति से जोड़ते हुए अध्ययन एवं अध्यापन का कार्य किया जाना बहुत ही आवश्यक है l  प्रो.मिश्रा ने बौद्धिक जगत के विचार करने के लिए एक सवाल भी दिया कि अंग्रेजों के जाने के बाद वैश्विक स्तर पर अब हमारे उपर हमलावर कौन है इस पर बौद्धिक लोग विचार करे।

असंगठित जनजातीय लोकसाहित्य को मुख्यधारा में लाने पर ज़ोर देना चाहिए- डॉ. निक्की चतुर्वेदी

कार्यक्रम की विशिष्ट वक्ता विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर  डॉ. निक्की चतुर्वेदी, एसोसियट प्रोफ़ेसर ने भारतीय ज्ञान परंपरा पर अपने विचार रखते हुए बताया, कि परंपरा वह है, जो निरंतर चलती रहती है वह जड़ नहीं रहती है lभाषा विज्ञान पर आधारित  विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से आपने बताया कि लोक ज्ञान की उपादेयता स्थानीय स्तर से ही जुड़ी होती है इसलिए लोक ज्ञान परंपरा को राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सम्मिलित किया जाना चाहिए डॉ.चतुर्वेदी ने जनजातीय लोकसाहित्य को भी मुख्यधारा में लाये जाने पर ज़ोर दिया ,क्योंकि यह असंगठित साहित्य प्रकृति-प्रेम और पर्यावरण संरक्षण ,व्यापार आदि सभी अनेक गतिविधियों को गीतों के माध्यम से सँजोया गया है इसको अनेक उदाहरणों प्रस्तुत किये ।

इस वेबिनार में राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से लगभग 300 से अधिक  प्राध्यापकों, शोधर्थियों एवं प्रतिभागियों ने सहभागिता की साथ इस वेबिनार में  20 शोधर्थियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया गया। अंत में प्रतिभागियों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का समुचित समाधान अतिथि वक्ताओं द्वारा दिया गया l उक्त कार्यक्रम को महाविद्यालय के यूट्यूब चैनल पर लाइव प्रसारित किया गया जिसकों  800 से अधिक लोगों के द्वारा देखा।

राकेश कुमार कसवाँ, (सहायक प्राध्यापक भूगोल), डॉ. अशोक लक्षकार, (सहायक प्राध्यापक रसायन), अशोक प्रजापत, (सहायक प्राध्यापक भौतिकी), राजेंद्र सिंह सोलंकी (सहायक प्राध्यपक इतिहास )ने तकनिकी सहयोग प्रदान किया l अंत में सभी वक्ताओं अतिथियों, प्राध्यापकों एवं शोधर्थियों का आभार श्री संजीव थोरेचा (क्रीड़ा अधिकारी) द्वारा ज्ञापित किया।