NEWS : राष्ट्रीय सेवा योजना शिविर, थैलेसेमिया की जांच, सावधानियां और जागरूकता पर विस्तार चर्चा, क्या बोले डॉ. सत्येन्द्र सिंह राठौड़, पढ़े खबर

राष्ट्रीय सेवा योजना शिविर

NEWS : राष्ट्रीय सेवा योजना शिविर, थैलेसेमिया की जांच, सावधानियां और जागरूकता पर विस्तार चर्चा, क्या बोले डॉ. सत्येन्द्र सिंह राठौड़, पढ़े खबर

नीमच। थेलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

थैलासीमिया दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थेलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थेलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है।किन्तु पालकों में से एक ही में माइनर थेलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है तब भी बच्चे को यह रोग होने के 25 प्रतिशत संभावना है।अतः यह अत्यावश्यक है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों अपनी जाँच करा लें।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत देश में हर वर्ष सात से दस हजार थैलीसीमिया पीडि़त बच्चों का जन्म होता है 

थेलेसीमिया पीड़ित के इलाज में काफी बाहरी रक्त चढ़ाने और दवाइयों की आवश्यकता होती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते,जिससे 12 से 15वर्ष की आयु में बच्चों की मृत्य हो जाती है। सही इलाज करने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की आशा होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है, विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जाँच कराएँ,गर्भावस्था के दौरान इसकी जाँच कराएँ,रोगी की हीमोग्लोबिन 11 या 12बनाए रखने की कोशिश करें,समय पर दवाइयाँ लें और इलाज पूरा लें।

कार्यक्रम का संचालन दिव्या माली, सरस्वती, काजल नागदा व शालू कुँवर स्वागत मिनाक्षी शर्मा ने प्रस्तुत किया। साथ ही मंच पर कार्यक्रम अधिकारी प्रोफेसर राकेश कुमार कस्वां डॉ. असरार उल्ला अंसारी, प्रो. रचना राजौरा, प्रो. राजेंद्र सिंह सोलंकी उपस्थित थे आभार राकेश कुमार क़स्वां ने व्यक्त किया।